September 8, 2024

NTPC का एक प्रोजेक्ट, एक सुरंग और कैसे खतरे की ओर बढ़ता रहा जोशीमठ

जोशीमठ शहर धंस रहा है. 600 से ज्यादा घरों में दरारें आ चुकीं हैं. लोगों को दूसरी जगह ले जाया जा रहा है. जोशीमठ के धंसने के लिए एनटीपीसी के हाइड्रो प्रोजेक्ट को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है

कैसे धंस रहा जोशीमठ?

उत्तराखंड का जोशीमठ शहर धंस रहा है. 600 से ज्यादा घरों में दरारें आ चुकीं हैं. लोगों को दूसरी जगह ले जाया जा रहा है. जोशीमठ के धंसने के लिए एनटीपीसी के हाइड्रो प्रोजेक्ट को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. हालांकि, एनटीपीसी का कहना है कि जमीन धंसने और प्रोजेक्ट का कोई कनेक्शन नहीं है.

फटती दीवारें… फर्श पर चौड़ी दरारें… और धंसते मकान… ये मंजर इन दिनों जोशीमठ में दिख रहा है. जोशीमठ उत्तराखंड का एक शहर है जो चमोली जिले में पड़ता है. कुछ समय से लोग अपने मकान धंसने की शिकायत कर रहे हैं. अब तक 600 से ज्यादा घरों में दरार आ भी चुकी है. तीन हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. ये वो लोग हैं जिन्हें अपना घर छोड़कर रिलीफ कैम्प या फिर दूसरे शहरों में बसे अपने रिश्तेदारों के यहां रहना पड़ रहा है.

चमोली के डीएम हिमांशु खुराना ने न्यूज एजेंसी को बताया कि जोशीमठ में कुल साढ़े चार हजार इमारतें हैं और इनमें से 610 में बड़ी-बड़ी दरारें आ चुकी हैं, लिहाजा अब ये रहने के लिए सुरक्षित नहीं हैं.

पर जोशीमठ धंस क्यों रहा है? इसके लिए NTPC के एक हाइड्रो प्रोजेक्ट को भी जिम्मेदार माना जा रहा है. स्थानीय लोगों का आरोप है NTPC के हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए सुरंग खोदी गई, जिस वजह से शहर धंस रहा है. हालांकि, NTPC ने इन सब बातों को खारिज किया है.

क्या है वो प्रोजेक्ट?

31 दिसंबर 2002 को NTPC यानी नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन और उत्तराखंड सरकार के बीच एक समझौते पर बात हुई. 23 जून 2004 को इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए.

ये समझौता था चमोली जिले की धौलीगंगा नदी पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बनाने का. इसका नाम है- ‘तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रोपावर प्लांट.’

14 फरवरी 2005 को तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीएम सईद और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने इसकी आधारशिला रखी.

ये पावर प्लांट अलकनंदा नदी के नीचे बन रहा है और इसमें 130 मेगावॉट के चार पेल्टन टर्बाइन जनरेटर शामिल हैं. धौलीगंगा नदी पर बैराज बन रहा है.

कुल मिलाकर ये पावर प्लांट 520 मेगावॉट का हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट है. इसके बनने के बाद सालाना 2.5 टेरावॉट ऑवर (TWh) बिजली पैदा होने की उम्मीद है. इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 2,978.5 करोड़ रुपये है.

इसकी वजह से कैसे धंस रहा जोशीमठ?

एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर वाईपी सुंदरियाल ने न्यूज एजेंसी से कहा कि सरकार ने 2013 की केदारनाथ बाढ़ और 2021 की ऋषि गंगा बाढ़ से सबक नहीं लिया है. उत्तराखंड के ज्यादातर इलाके भूकंप प्रभावित हैं.

उन्होंने ‘सेंट्रल हिमालय’ बुक के हवाले से बताया कि जोशीमठ लैंडस्लाइड से निकले मलबे पर बसा है. 1971 में भी कुछ घरों में दरारें आई थीं. उस समय भी यही कहा गया था कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है और जोशीमठ में ज्यादा विकास कार्य नहीं करना चाहिए, पर इन सबका पालन नहीं किया गया.

सुंदरियाल ने कहा कि जोशीमठ का मौजूदा संकट इंसानों ने ही खड़ा किया है. आबादी कई गुना बढ़ गई है, जिस वजह से पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है. इसके अलावा बेकाबू तरीके से इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए सुरंग बनाई जा रही है और इसके लिए ब्लास्ट किए जा रहे हैं, जिस कारण मलबा निकल रहा है और घरों में दरारें पड़ रहीं हैं.

चेतावनी को नजरअंदाज किया!

1976 में मिश्रा आयोग की रिपोर्ट आई थी, जिसमें चेताया गया था कि जोशीमठ की जड़ से छेड़खानी करना खतरनाक साबित होगा, क्योंकि ये मोरेन पर बसा शहर है. मोरेन यानी ग्लेशियर पिघल जाने के बाद जो मलबा बचता है.

गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में बने इस आयोग ने कहा था कि जोशीमठ के नीचे की जड़ से जुड़ी चट्टानों को बिल्कुल न छेड़ा जाए और विकास कार्य भी एक सीमित दायरे में किए जाएं.

आयोग का कहना था कि जोशीमठ रेतीली चट्टान पर स्थित है, इसलिए इसकी तलहटी में कोई विकास कार्य न किया जाए. खनन तो बिल्कुल भी नहीं. इसमें सुझाव दिया गया था कि अलकनंदा नदी के किनारे एक दीवार बनाई जाए और यहां के नालों को सुरक्षित किया जाए. लेकिन सरकार ने इस पूरी रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया.

जोशीमठ दशकों से धंस रहा है. 70 के दशक में भी यहां कुछ घरों में दरारें आ गई थीं, क्योंकि सालों से इसकी तलहटी में भूस्खलन हो रहा है. जोशीमठ के स्योमां, खोन जैसे गांव दशकों पहले ही खाली कराए जा चुके हैं.

और अब गांधीनगर, सुनील का कुछ इलाका, मनोहर बाघ, रविग्राम गौरंग, होसी, जिरोबेड, नरसिंह मंदिर के नीचे और सिंह धार समेत कई इलाकों की जमीन धंस रही है.

2019 और 2022 में भी IPCC की रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा था कि हिमालयी इलाका आपदाओं के लिए बेहद संवेदनशील है.

एनटीपीसी का क्या है कहना?

जोशीमठ के धंसने की वजह स्थानीय लोग एनटीपीसी की सुरंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. ये सुरंग तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रो प्रोजेक्ट के तहत बन रही है. हालांकि, एनटीपीसी ने इन आरोपों को खारिज किया है.

एनटीपीसी ने एक बयान जारी कर दावा किया कि ये सुरंग जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं जा रही है और इसे बनाने के लिए टनल बोरिंग मशीन का इस्तेमाल किया जा रहा है, न कि ब्लास्टिंग का.

एनटीपीसी का कहना है कि जोशीमठ के धंसने और सुरंग के निर्माण में कोई कनेक्शन नहीं है.

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