ना NTPC की सुरंग ना चारधाम प्रोजेक्ट का दोष ! जोशीमठ आपदा का आखिर कौन है दोषी ?
जोशीमठ खत्म हो रहा है. इसके दरकने को को लेकर वर्षों से अलर्ट किया जा रहा था. इसको खोखला करने वाली परियोजनाओं को रोकने के लिए प्रदर्शन किए जा रहे थे,
लेकिन कोई नहीं जागा. अब हर कोई जोशीमठ संकट के लिए खुद को निर्दोष बता रहा है तो सवाल यह है कि जोशीमठ की ऐसी हालत के लिए कौन जिम्मेदार है?
जोशीमठ को उत्तराखंड का ‘काशी’ माना जाता है. पर्यटन, धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व वाली यह जगह अब खत्म हो रही है. जोशीमठ में जगह-जगह जमीन धंस रही है. यह आपदा तेजी से अपना दायरा बढ़ा रही है. जोशीमठ के अलावा कर्णप्रयाग, ऋषिकेश, चमोली, चंपावत, उत्तरकाशी में भी जमीन दरकने लगी है.
इसरो का कहना है कि पिछले 12 दिन में जोशीमठ की जमीन 5.4 सेमी तक धंस गई है. ISRO ने कहा है कि जोशीमठ का पूरा इलाका कुछ दिनों में नष्ट हो जाएगा. जमीन दरकने से 760 घरों में दरारें आ चुकी हैं.
इनमें से 128 भवनों को रेड जोन में रखा गया है. प्रभावितों पीपलकोटी, गौचर, ढाक, कोटिफार्म, सेलांग के साथ-साथ नई जगहों में भेजा जा रहा है. पर्यावरणविद्, नेता और स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस आपदा के पीछे जोशीमठ और उसके आस-पास चल रहीं परियोजनाएं जिम्मेदार हैं.
एनटीपीसी के हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए खोदी जा रही सुरंग और चारधाम प्रोजेक्ट की वजह से जोशीमठ की नींव को नुकसान पहुंचा है, जिसकी वजह से यह आपदा आ रही है. लोग ऐसी सभी परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं.
एमपी की पूर्व सीएम उमा भारती ने भी कहा है कि NTPC की योजनाएं जोशीमठ के दिल को नीचे से चीर गई हैं. उन्होंने कहा कि हमने 2017 में ही कह दिया था कि ऐसे प्रोजेक्ट हिमालय के लिए अपूर्णीय क्षति हैं. उस वक्त भी हमारी ही सरकार में कुछ अधिकारी इस प्रोजेक्ट को पूरा कराने की जिद पर अड़े हुए थे.
वहीं सरकार ने भी फिलहाल बीआरओ के अन्तर्गत निर्मित हेलंग बाईपास निर्माण कार्य, एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के अन्तर्गत निर्माण कार्य पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. साथ ही जोशीमठ-औली रोपवे का संचालन भी अगले आदेश तक रोक दिया गया है.
एनटीपीसी को लेकर सरकार करवाई जांच
उत्तराखंड सरकार ने भी इस दावे की जांच कराने में जुट गई है कि एनटीपीसी द्वारा किए गए ब्लास्ट से ही जोशीमठ तबाह हो रहा है. भू-धंसाव के कारणों का पता लगाने के लिए 8 इंस्टीट्यूट स्टडी कर रहे हैं. मुख्य सचिव उत्तराखंड एसएस संधू का कहना है कि इस स्टडी की रिपोर्ट के आधार पर ही निर्णय लिया जाएगा.
हालांकि उनका कहना है कि मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर पता चला है कि जोशीमठ के नीचे कठोर चट्टान नहीं है, इसलिए वहां भूधंसाव हो रहा है. 1976 में भी जोशीमठ में थोड़ी जमीन धंसने की बात सामने आई थी. उन्होंने कहा कि जोशीमठ में पानी निकलने के बारे में पता करने के लिए विभिन्न संस्थान जांच में लगे हैं.
हालांकि इन तमाम दावों और आरोपों के बीच एक सच है कि जोशीमठ खत्म हो रहा है. अब सवाल यह है कि आदि शंकराचार्य के बसाए जोशीमठ की इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है?
जोशीमठ में घरों का दरकना जारी लोग नाराज, एनटीपीसी गो बैक के लगे पोस्टर
एनटीपीसी परियोजना को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है. जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के लोगों ने पूरे बाजार में एनटीपीसी गो बैक के पोस्टर लगाए हैं. हर दुकान और मकान की दीवारों पर ये पोस्टर देखे जा सकते हैं. जोशीमठ के आसपास के क्षेत्रों में भी लोग नाराज हैं.
सुरंग की वजह से नहीं दरक रही जमीन: NTPC
NTPC ने तमाम आरोपों पर सफाई देते हुए कहा है कि एनटीपीसी जोशीमठ शहर के नीचे सुरंग का निर्माण नहीं कर रहा है. इस सुरंग का निर्माण टनल बोरिंग मशीन से किया जा रहा है. मौजूदा समय में कोई भी ब्लास्टिंग का काम नहीं किया जा रहा है. एनटीपीसी पूरी जिम्मेदारी के साथ कहना चाहती है कि इस सुरंग की वजह से जोशीमठ की जमीन नहीं धंस रही है.
डेंजर जोन वाले घरों पर लगाए जा रहे रेड मार्क
चारधाम मार्ग के कारण नहीं हो रहा भूधंसाव: गडकरी
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि विशेषज्ञ जोशीमठ में धंसने की घटनाओं के कारणों का अध्ययन कर रहे हैं. जोशीमठ अपनी चट्टान के कारण समस्याग्रस्त है. उन्होंने कहा कि चारधाम मार्ग के कारण यह स्थिति नहीं पैदा हुई है.
क्या बसाया जाएगा नया जोशी मठ
जोशीमठ से लोगों का पलायन शुरू हो गया है. प्रशासन लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट कर रहा है. इस बीच चर्चा है कि इस पूरे शहर को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाएगा यानी यह पूरा शहर दूसरी जगह रिलोकेट हो सकता है. इसके लिए सर्वे का काम भी शुरू हो गया है. टिहरी को भी ऐसे ही बसाया गया है. टिहरी बांध बनने की वजह से शहर डूब गया था. इसके बाद नए शहर को बसाया गया.