July 27, 2024

Chief Guest on Republic Day 2023 in india

मुश्किल में जिस मुस्लिम देश को सऊदी, UAE ने भी छोड़ा अकेला, उसके लिए भारत का बड़ा कदम मिस्र खाड़ी देशों का लाडला हुआ करता था लेकिन अब ये देश उसे संकट में पड़ा देख पीछा छुड़ा रहे हैं. मिस्र गंभीर आर्थिक संकट में है. ऐसे में भारत उसकी काफी मदद कर रहा है. भारत ने इस साल गणतंत्र दिवस के मौके पर मिस्र के राष्ट्रपति को बतौर चीफ गेस्ट बुलाने का फैसला किया है.

खाड़ी देशों के बीच अपनी पकड़ रखने वाला देश मिस्र वर्तमान में गंभीर आर्थिक संकट झेल रहा है. पिछले साल मार्च में मिस्र की करेंसी पाउंड ने अपना आधा मू्ल्य खो दिया. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मिस्र की मुद्रास्फीति बढ़कर 24.4 प्रतिशत तक हो गई है. देश पर बाहरी कर्ज बढ़कर करीब 170 अरब डॉलर हो गया है. ऐसी हालत में मिस्र को मदद करने वाले सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत आदि देश उससे पीछा छुड़ा रहे हैं. मिस्र अब अलग-थलग पड़ गया है.

लेकिन भारत ने मिस्र को लेकर अपना दिल बड़ा किया है. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने गणतंत्र दिवस के मौके पर मिस्र को अपने यहां आमंत्रित कर रहा है.

बतौर चीफ गेस्ट भारत पहुंचेंगे मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्तेह अल-सीसी

भारत अपने गणतंत्र दिवस के मौके पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी को बतौर चीफ गेस्ट आमंत्रित कर रहा है. राष्ट्रपति के साथ 120 सदस्यों का एक दल भी आएगा जो 26 जनवरी के परेड में कर्तव्य पथ पर मार्च करेगा. यह पहली बार हो रहा है कि मिस्र का कोई दल भारत के गणतंत्र दिवस के परेड में हिस्सा ले रहा है.

संकट में पड़े मिस्र को भारत की तरफ से भी मिली है बड़ी मदद

रूस और यूक्रेन का गेहूं का सबसे बड़ा आयातक मिस्र उस वक्त और मुश्किल में पड़ गया जब दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया. वैश्विक बाजार में गेहूं की किल्लत हो गई जिससे इसके दाम आसमान छूने लगे. ऐसे समय में भारत मिस्र की मदद को सामने आया. उसने मिस्र को रियायती दरों पर सैकड़ों टन गेहूं उपलब्ध कराया. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबक, अप्रैल 2022 में भारत-मिस्र के बीच दस लाख टन गेहूं की सप्लाई को लेकर बात हुई थी.

मई आते-आते खुद भारत में गेहूं की किल्लत शुरू हो गई जिसे देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दिया. लेकिन भारत ने मिस्र सहित कई देशों को गेहूं की खेप भेजनी जारी रखी.

मिस्र की न्यूज वेबसाइट Egypt Independent की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मिस्र में भारतीय राजदूत अजीत गुप्ते ने पिछले साल कहा था कि साल 2023 की शुरूआत में भारत ने मिस्र में अपना गेहूं निर्यात बढ़ाने की योजना बनाई है. उन्होंने कहा था कि भारत की गेहूं की घरेलू मांग में बढ़ोतरी हुई है और उत्पादन भी लगभग पांच प्रतिशत कम हुआ है लेकिन फिर भी भारत मिस्र में गेहूं की कमी नहीं होने देगा.

सीएनबीसी अरबिया के साथ एक इंटरव्यू में गुप्ते ने कहा था कि फिलहाल मिस्र में भारत का कुल निवेश 3.2 अरब डॉलर का है लेकिन आने वाले वक्त में यह बढ़ने वाला है. कई भारतीय कंपनियां मिस्र में अपना निवेश बढ़ाना चाहती हैं.

भारत की तरफ से इस मदद ने अलग-थलग पड़े आर्थिक रूप से बदहाल मिस्र को बड़ी राहत दी है. भारत ने उसे अपने गणतंत्र दिवस में चीफ गेस्ट बनाकर उसके सम्मान में भी बढ़ोतरी की है.

मिस्र के हालात बेहद खराब

कई पर्यवेक्षकों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने चेतावनी दी है कि मिस्र एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट की ओर बढ़ सकता है, यहां तक ​​कि इसका पतन भी हो सकता है.

जुलाई 2013 में मिस्र में तख्तापलट के बाद सीसी सत्ता में आए थे. उनके सत्ता में आने के बाद से खाड़ी देशों सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत ने भारी आर्थिक मदद दी थी. इन देशों ने मिस्र के केंद्रीय बैंक में अरबों डॉलर जमा किए जो फिलहाल देश की कुल विदेशी मुद्रा भंडार का लगभग 82 प्रतिशत है.

मिस्र सरकार की आर्थिक नीति के हिस्से के रूप में मिस्र की कंपनियों में इन देशों ने निवेश किया और विभिन्न संस्थाओं में हिस्सेदारी खरीदी. इन खाड़ी देशों ने मिस्र की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं को भी गारंटी दी.

लेकिन बावजूद इसके, मिस्र सरकार की नीतिओं के चलते देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ती गई और आज यह भीषण रूप ले चुकी है. हाल में आई कई रिपोर्टों से पता चला है कि मिस्र में चल रहे आर्थिक संकट के बीच खाड़ी के इन देशों ने मिस्र की सरकार को आर्थिक मदद देनी बंद कर दी है. वो मिस्र से अपना आर्थिक समर्थन वापस ले रहे हैं क्योंकि राष्ट्रपति सीसी की अक्षमता ने मिस्र में भारी निवेश करने वाले इन देशों को निराश किया है.

कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि देश को चलाने में सीसी विफल साबित हुए हैं. मिस्र अब खाड़ी देशों के लिए आर्थिक रूप से बोझ बन गया है इसलिए अब ये देश मिस्र को वित्तीय संकट से बाहर निकलने में सहायता नहीं दे रहे.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत जैसे देश तो सीसी को हटाने की फिराक में है. ये देश मिस्र की सेना पर दबाव बना रहे हैं कि वो सीसी का विकल्प तलाशें.

सीसी ने भी खुले तौर पर इस बात को माना है कि उनके मित्र देश अब उनकी मदद नहीं कर रहे. पिछले साल अक्टूबर में एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा था, ‘हमारे दोस्तों और सहयोगियों को यह विश्वास हो गया है कि मिस्र के लोग अब फिर से खड़े होने में सक्षम नहीं हैं. उन्होंने सालों तक वित्तीय संकट को खत्म करने के लिए हमारी सहायता की लेकिन अब वो समझ रहे हैं कि मिस्र समस्या से नहीं निकल पा रहा है.’

खाड़ी देशों के अधिकारी भी मिस्र की आर्थिक मदद का खुले तौर पर विरोध कर रहे हैं. कुवैत के सांसद ओसामा अलशाहीन ने हाल ही में अपनी सरकार को चेतावनी दी थी वो कि आईएमएफ को मिस्र के लिए किसी तरह की गारंटी न दे.

सालों तक मिस्र की मदद क्यों करते रहे खाड़ी देश?

खाड़ी देश किसी भी लोकतांत्रिक परिवर्तन से डरते हैं. सीसी ने अपने देश में सैन्य शासन के खिलाफ उठ रही सभी आवाजों को सख्ती से दबाया है. उन्होंने मिस्र में लोकतांत्रिक परिवर्तन की सभी मांगो को विफल कर दिया है. मिस्र से लगे खाड़ी देशों को इसका फायदा हुआ है. क्योंकि अगर मिस्र का सैन्य शासन कमजोर पड़ता और वहां लोकतंत्र आता तो यह खाड़ी देशों के लोगों में राजशाही के प्रति विरोध पैदा करता और वहां भी प्रदर्शन शुरू हो सकते थे.

मुस्लिम ब्रदरहुड, जिसे सऊदी अरब और यूएई एक बड़े खतरे के रूप में देखते थे, उसे मिस्र की सरकार ने बेहद कमजोर कर दिया है. मिस्र की मदद करने का खाड़ी देशों के पास एक बड़ा कारण रहा है. खाड़ी देश अपने दुश्मन ईरान के प्रभाव को कम करने के लिए मिस्र की सहायता कर उसे मजबूत बनाने की कोशिश में थे.

लेकिन अब लगता है कि इन देशों ने मिस्र का विकल्प खोज लिया है जिस कारण अब वो मिस्र से पीछा छुड़ा रहे हैं. अमेरिका ने पहले ही ईरान को कमजोर करने के लिए इजरायल के साथ गठजोड़ किया है. संभव है कि ये देश भी अब इजरायल के संपर्क में हो या क्षेत्र में विभिन्न प्रॉक्सी समूहों और मिलिशिया का इस्तेमाल कर रहे हों.

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